मैथिली सायरी
मैथिली सायरी
June 21, 2013
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अछि आस बस अहिँसँ, हमर साँस अछि अहिँसँ
देखीते रही अहिँके, केहन पिआस अछि अँहिसँ

दु किनार जेना नदीके, कोना भेलै जिनगी अपन
अहि समयके काटि लेबै,से बिश्वास अछि अहिँसँ….!

 

छम छम पाजेब बाजि उठल
सुनि मोन मयूर नाचि उठल

हृदयक सुखल नदीमे जेना
प्रीतक अचानक बाढि उठल…!

 

 

राति रहै कतबो जे कारी, बिपति रहै कतबो भारी
अन्हार त’ भागि पड़ेतै, आसक दीप जरिते रहै छै

समयके खेल छै सभटा, कहियो ईजोत अन्हरिया
कर्मके जे नहि तेजलक, ओ त’ फल पबिते रहै छै…!

 

दुख सुख रहै छै लागले मोस्किल त’अबिते रहै छै
कानि किएक हम सोचि जिनगी गीत गबिते रहै छै ….!

 

मौसम बदलैत रहल, आस जरैत रहल
फूलक ने बात पुछू, पात पात झरैत रहल

फेरो अयलै बसंत, फागुन फगुनाहट नेने
सुन्दर भोरक आसमे ओ राति काटैत रहल….!

 

शेर लिखू हम गीत लिखू
मोन होएत अछि कोनो गजल लिखू

नजरि हटितै, त’ ने लिखितौं…,
कोना कलम भेल बेकहल लिखू…..!

 

देश रहय परदेश रहय,चाहे कोनो परिवेश रहय
राखब मोन मे अपना सभ सदिखन,
कहुना मैथिल सँस्कृती बिषेश रहय…….!

“बर्रे” इ बनाओल गेल अछि सुप्रीता कर्ण जी द्वारा !
अहि कलाके सीखबाक लेल एखन ओ प्रयाशरत छथि…!

 

अहाँ लेल खेल छल किछु दिन के, की कोनो मजबूरी छल
सूनलौं ने किया किछु हमर, मोने मे हमर बात रहल

जागल छी बहुत दिन सॉ आब, सुतितौं हम चिर निद्रा मे
देह के राखू कतेक दिन हम, देखू हमर जान चलल…..!

 

 

हम चाहब की अहिसँ बेसी की सभक मोनमे एहन उल्लास रहय
कोनो अन्हार के नहि कतहु बास भेटय दीप’क एहन प्रकाश रहय…..!

 

 

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