मैथिली गजल
June 24, 2013
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रुप रँग एके दुख रँज एके
दोसराके पछाड़यके ढँग कते
भेल बहुत भेल आबो सोचियौ
तौलू अपना मे अछि ढँग कते
ई हम कयलौं तों की कयले
कहिआ धरि आ ई प्रपँच कते
बिनु बातक रगड़मे पड़ल रहब
अहिसँ अछि मिथिला तँग कते
क्षय नै दोसराक, देश राग रचू
अपन जयक रचू नव छँद जते …! अनिल मल्लिक !!!