बटगवनी प्रितम प्रित लगाक जाई छी विदेश यो, धरबै जोगीन भेष यो ना अषाढ एक मास बितल, सावन दुई मास बितल आरो बितगेल भादब सन दिन यो, धरबै जोगीन भेष यो ना आशीन आसा लगाओल कार्तीक कँतो नही आयल अगहन मन करैय जइतौहु नैहर यो, धरबै जोगीन भेष यो ना पुष सीरक भरायब माघ रघुबरके […]